"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

"आओ फिर से दिया जलाएँ"

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“आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा

सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें

बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ

हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल

वतर्मान के मोहजाल में
आने वाला कल न भुलाएँ।

आओ फिर से दिया जलाएँ।

आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा

अंतिम जय का वज़्र बनाने
नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।

आओ फिर से दिया जलाएँ”

-अटल बिहारी वाजपेयी 

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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