दिनांक 9 मार्च 1924, मुंबई के दामोदर हॉल में शाम 4 बजे एक ऐतिहासिक सभा का आयोजन हुआ। इस सभा में बाबासाहब डॉ. आंबेडकर ने एक संगठन, "बहिष्कृत हितकारिणी सभा" की स्थापना का प्रस्ताव रखा, जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया। यह केवल एक संगठन की स्थापना नहीं थी, बल्कि यह उस सामाजिक आंदोलन का जन्म था, जिसने सदियों से दमित और शोषित समाज को एक नया आत्मबोध, एक नई चेतना प्रदान की।
इसी सभा में एक शक्तिशाली घोषवाक्य तय किया गया –
"Educate, Agitate, Organise",
जिसका हिंदी अनुवाद है:
"शिक्षित बनो, आंदोलित करो, संगठित होओ"।
घोषवाक्य का मूल आशय
इस वाक्य के पीछे एक गहरा मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण था।
बाबासाहब का उद्देश्य मात्र औपचारिक शिक्षा (डिग्रियाँ) देना नहीं था, बल्कि बुद्धि को जागृत करना, आत्मसम्मान का बोध कराना, और दासता की जंजीरों को पहचानने की दृष्टि देना था।
1. "शिक्षित बनो" का अर्थ:
यहां शिक्षा का आशय केवल किताबी ज्ञान या डिग्री से नहीं था। बाबासाहब मानते थे कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को अपनी स्थिति, अपने अधिकार और अपने शोषण के कारणों को समझने की क्षमता देना है। यह शिक्षा एक वैचारिक शस्त्र है, जो अज्ञान की बेड़ियों को तोड़ने में सहायक है।
"जो कौम अपना इतिहास नहीं जानती, वह अपने भविष्य का निर्माण नहीं कर सकती।"
इस कथन में शिक्षा का असली अर्थ छिपा है – इतिहास का ज्ञान, पहचान की चेतना और आत्ममंथन की प्रेरणा।
2. "आंदोलित करो" का अर्थ:
"आंदोलन" का अर्थ केवल सड़क पर उतरकर विरोध करना नहीं है। यहां आंदोलित करने का तात्पर्य है –
लोगों के अंतर्मन में अपनी दुर्दशा, शोषण और दीनता के प्रति एक प्रकार की चिढ़ या असंतोष उत्पन्न करना।
यह असंतोष ही आगे चलकर क्रांति की नींव रखता है।
जब तक व्यक्ति अपनी दशा को समझकर आंतरिक रूप से बेचैन नहीं होता, तब तक वह व्यवस्था परिवर्तन के लिए तैयार नहीं होता।
बाबासाहब ने इसीलिए कहा था:
"गुलामों को उनकी गुलामी का अहसास करा दो, वे स्वयं ही विद्रोह कर उठेंगे।"
3. "संगठित होओ" का अर्थ:
बिना संगठन के कोई भी क्रांति सफल नहीं हो सकती।
बाबासाहब का स्पष्ट मत था कि जब समान पीड़ा वाले लोग एकत्र होते हैं, तो "Co-Sufferer" की भावना जन्म लेती है –
यह एक मनोवैज्ञानिक सिद्धांत है कि समान कष्ट भोगने वाले लोग एक-दूसरे के अधिक निकट आते हैं और मिलकर परिवर्तन की शक्ति बनते हैं।
संगठन, आंदोलन की रीढ़ होता है, और संगठन तभी टिकाऊ होता है जब वह विचारधारा पर आधारित हो।
बदलते समय में घोषवाक्य का विकृतिकरण
बाबासाहब के जीवनकाल में ही इस नारे को थोड़ा बदलकर कहा जाने लगा –
"Educate, Organise, Agitate" अर्थात
"शिक्षित बनो, संगठित होओ और संघर्ष करो"।
यह परिवर्तन तर्कसंगत था क्योंकि उद्देश्य वही था –
पहले लोगों को शिक्षित करना, फिर संगठित करना और फिर संघर्ष के लिए तैयार करना।
लेकिन दुख की बात यह है कि समय के साथ-साथ इस नारे की आत्मा को ही कमजोर कर दिया गया।
अब इसे इस रूप में प्रचारित किया जा रहा है:
"शिक्षित बनो, संगठित बनो और संघर्ष करो" –
यहाँ अब "आंदोलित करो" या चेतना जगाने की प्रक्रिया गायब हो गई है।
शिक्षा का अर्थ सिर्फ डिग्री तक सिमट गया है।
बाबासाहब के आंदोलन से उपजे कार्यकर्ता अब केवल शिक्षित (डिग्रीधारी) तो हो गए, लेकिन उनमें वैचारिक प्रतिबद्धता और आंदोलन की चेतना कम होती चली गई।
वे बुद्धिजीवी तो बने, लेकिन सक्रिय क्रांतिकारी नहीं बन पाए।
कुछ तो सत्ता के करीब पहुँचकर उपभोगवादी हो गए और संघर्ष के बजाय सुविधाओं की राजनीति में उलझ गए।
बाबासाहब का दर्द और आज की वास्तविकता
बाबासाहब ने अपने जीवन में इस गिरावट को महसूस किया था।
इसलिए 18 मार्च 1956 को आगरा के रामलीला मैदान में उन्होंने कहा:
"मुझे पढ़े-लिखे लोगों ने धोखा दिया है।"
यह बयान कोई सामान्य आलोचना नहीं, बल्कि गहरा आत्म-पीड़ा से भरा निष्कर्ष था।
आज के दौर में, यह सच पहले से भी ज्यादा प्रासंगिक है।
हम बाबासाहब की मूर्तियों को पूजते हैं, उनके चित्रों को मंचों पर सजाते हैं, लेकिन उनके विचारों को नहीं अपनाते।
हम "बाबा को मानते हैं, लेकिन बाबा की नहीं मानते"।
अब क्या करना होगा?
यदि हमें बाबासाहब के "व्यवस्था परिवर्तन" के सपने को साकार करना है, तो हमें उनके मूल विचार को फिर से अपनाना होगा:
शिक्षा को केवल डिग्री नहीं, बल्कि चेतना और वैचारिक प्रशिक्षण मानना होगा।
अपने समाज को आंदोलित करना होगा – उन्हें अपनी दुर्दशा के प्रति जागरूक करना होगा।
एक मजबूत, सशक्त, और वैचारिक संगठन तैयार करना होगा।
"हमारा संघर्ष दयाहीन है – यह एक क्रांति है, इसमें संकोच नहीं चलेगा।" – बाबासाहब
निष्कर्ष
बाबासाहब का दिया हुआ मंत्र "Educate, Agitate, Organise" केवल एक नारा नहीं, बल्कि समाज परिवर्तन की वैज्ञानिक प्रक्रिया है।
आज आवश्यकता है कि हम इस मूल मंत्र को उसके वास्तविक अर्थों के साथ फिर से जीवित करें।
यह केवल अनुसरण करने का नहीं, बल्कि आत्मसात करने का समय है।
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